Sunday, January 18, 2009

देख उस माँ की हालत.......


आज का मौसम
और सर्द हवा के झोके
लिपटी मै गर्म कपड़ो मे
क्या जानू ,की सर्दी है क्या ..
ऊपर से बारिश का ये नज़ारा जो
कमरे से देखी मैंने
तो मेरे मन को वोह
नज़ारा भा गया
पर
तभी किसी मासूम के
रोने से मेरी नींद मै खलल
आ गया ..
देखा जो बाहर जाके
तो आँखे हुई मेरी नम
सामने की झोपडी से एक
माँ के रोने की पुकार सुनी
देखा तो जाना की
क्या है सर्दी का मौसम
मासूम ठण्ड से कांप रहा था
और मजबूर माँ के अंचल को खिंच
रहा था ....
नारी तो है इस दुनिया की रौनक
पर
उसका बदन तो कपडे के हर .....
कौणे से झांक रहा था
वोह क्या जाने माँ का आंचल है
तार तार..
देख उस माँ की हालत
आँखे हुई नम मेरी
उतार अपना दुशाला
तन ढका उस माँ का
जो ठण्ड से कांप रही ....
मुह से तो कुछ ना बोली .......
पर उसकी आँखे मुझे बहुत कुछ कहें गयी ...............
आज का मौसम ..................
और ये सर्द हवा का झोंका ..................
(.....कृति.....अनु....).

Tuesday, January 13, 2009

अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ...............


उड़ने दो ..उड़ने दो खुले आसमा में ,
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ,
जंहा सारा आसमा मेरा हो ,
जंहा ना बंदिशों का डेरा हो ...
भले मिले ना इन राहो पे फूल तो ,
उनके काँटों से भी मुझे दोस्ती करने दो ,
पर फूलो कि भांति मुझे भी खिलने दो
खिलने दो ..............
करने दो ,करने दो ...
मुझे भी अपने मन कि करने दो ,
खुद से खुद का परिचय करने दो ,
आज इस ज़माने मे ,मैंने भी बड़ी बात कर ली
खुद से खुद कि मुलाकात कर ली .........
तोडी परम्परा कि बेडिया.......
अपने खुद के सपने सजाने के लिए ,
अब तो परिवर्तन के दोर..कि शुरुआत कर दी ......
उड़ने दो ..उड़ने दो खुले आसमा में ,
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ..............
बंदिशों कि घेरे में ..छटपटाती नारी हु में ,
गलतियों से बचते हुए ,जिंदगी गुज़री ,
अपनों कि बेडियों से अब ,मुक्ति पाने लगी हू मै ,
इन बेडियों से ..जकड़ी तन और मन कि काया है ,
आज
खुलने दो ..खुलने दो ..........
मुझे भी अब हक़ के साथ
जीने दो....जीने दो .....
बचे जो पल ज़िन्दगी के ........
मुझे खुद के लिए जीने दो.......
जीने दो ...........
उड़ने दो ..उड़ने दो खुले आसमा में ,
अरमानो के पंख लगा ....उड़ने दो ...............
.....अनु.......

Saturday, January 10, 2009

रंगों कि भरी दुनिया मे बदरंग हो चुकी हूँ ................


एक ऐसी लड़की ...एक ऐसी औरत ..जो अपने प्यार मै अंधी है
जिसे नहीं पता की उसका अंजाम क्या होने वाला है
उस पीडा को अपने शब्दों में ढलने का प्रयास किया है .........................
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रंगों कि भरी दुनिया मे बदरंग हो चुकी हूँ .......
भोग के रोग को इस जीवन मे भोग चुकी हूँ
अब जीने कि इच्छा को खो सी चुकी हूँ
जिंदगी के मेले में ख़ुशी भी मिली ..गमो के लिफाफे में
जीवन के सतरंगी आसमा में ......
इन वीरान राहो का मै..क्या करू ,
जब उतरा जवानी का नशा तो ,
अपने मन कि घुटन का मै क्या करू ,
बहुत संभाला था अपने को
पर भावनायो के समंदर में
मै खुद को डुबो चुकी हूँ .....
तेरे ही साथ जीने कि लालसा ने ......
मुझे अपनों से किया जुदा है
अब आँखों में आंसू लिए ,
दर दर भटक रही हूँ ...
मै डाली से टूटा वोह फूल हू ..
जो पूजा के काबिल नहीं ......
समुन्द्र कि वोह लहर जिसका ,
किनारा भी अपना नहीं ......
अपने मन के मंथन को ,कैसे मै शांत करू .....
तन ,धन ,यौवन का ..ना जाने कब नाता छुटे
अपने मन के मंथन को ,कैसे मै शांत करू .....
रंगों कि भरी दुनिया मे बदरंग हो चुकी हूँ ...........
(......कृति......अनु......)

Thursday, January 8, 2009


एक बेटी का अपनी माँ को स्नहे भरा तोहफा ...............
........................................
..................
माँ हर एक को जीवन में सिर्फ एक बार मिलती है !
जिसे कोई उपमा न दी जाये वोह है माँ .....
जिसकी कोई सीमा नहीं वोह है माँ ........
प्रेम को भी पतझड़ ,स्पर्श ना करे वोह है माँ ..
संवेदना और स्नहे कि मूरत है माँ .....
माँ तो तपती धूप में भी ,ढंडी छावं का रूप है ,
दिव्ये गुणों से अभिभूत है माँ !
मुसीबत से बचाती है माँ......
जो गिरते भी है गलती से ,
तो उठा कर गले से लगाती है माँ ,
ना भटको कभी पथ से तुम एह बच्चो ........
ये सच्चा पढ़ पढाती है है माँ !
जिस राह पे मिले ठोकर तुझे ,
उसी राह हरगिज़ ना चल मेरे बच्चे ,
सुख कि खेती करो ,
दुखो के बीज ना बायो मेरे बच्चों !
.......
माँ कि जितनी इज्ज़त कि जाये वोह थोडी है !
हरी मूरत का रूप है माँ.........देख सको तो तो देखो .....बंधू मेरे ................
(....कृति.........अनु.....)

Tuesday, January 6, 2009

दोस्ती.....................


अजब करिश्मा देखा हमने दोस्ती में
दोस्ती में भावनायो का समंदर देखा
नापी न जाये गहराई जिसकी
निश्छल ,नि: स्वार्थ है इस दोस्ती कि भाषा
रोतो को भी हँसते देखा हमने दोस्ती में
अजनबियों को भी बंधते देखा इस दोस्ती में
रूठो को भी मानते देखा दोस्ती के वास्ते ..
अजब करिश्मा देखा हमने दोस्ती में.................
मैंने तो भटकी हुई थी ,अनजान राहो पे ,
कितने छाले पड़े थे इस पाव में
लो आ गयी ,आ गयी ,मैं भी दोस्ती कि राह में
हंसी ख़ुशी का सागर है ये दोस्ती ,
गमो से पर जाने के किवायत है ये दोस्ती ....
सावंले सलोने रूप को भी सवारती है दोस्ती
इज्ज़त से जीती और मर्यादा में रहती है दोस्ती
सम्मान देती और लेती है दोस्ती ,
जब दोस्तों कि मुखो पे छाए हँसी ,
बस इता सा ही चाहती है मेरी और तेरी दोस्ती ...........
मेरे सर का ताज है .......ये दोस्ती .....
अजब करिश्मा देखा हमने दोस्ती में..................
(कृति.....अनु......)

Sunday, January 4, 2009

प्यार ...........


प्यार .......ये वोह शब्द है जो अधूरा होते हुए भी अपने आप मे..पूर्ण है
प्रेम अजेर अमर है !गंगा जल समान ...प्रेम राधा है ..प्रेम मीरा है ....प्यार वोह प्याला है
जिस ने पिया ...बस उस का रसपान वही जाने !भीड़ मे प्यार है जिस के साथ वोह फिर भी अकेला है ...और अकलेपन में है साथी उसका प्यार...सच्चा प्यार उस मोती समान ॥जो सुच्चा है पवित्र है ..........प्यार को परिभाषित ना करो दोस्तों ......ये अपनेआप मे है पूर्ण ..........
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आँखों के रस्ते से जो दिल में उतरे हो ,
वही बसेरा तुमने बना लिया ,
चाहू या ना चाहू मै ,
फिर भी मेरा साथ तू ने पा लिया है ,
ये प्रेम की डगर पर मुझे साथ ले कर ,
चले हो मेरे मन के मीत ,
चलना साथ..........
देखो कही ......
भटक ना जायू...अटक ना जायू ...खो ना जायू ,
इस दुनिया की भीड़ में ..
हे ! मेरे मीत ,प्रेम के गीत ,
दे कर अपनी आवाज़ ....
डालना मेरे पैरो में प्यार की बेडियाँ ,
मेरे चेतन तन और अव् चेतन मन में ,
तूने दिया तीन शब्द का गीत,
सत्यम,शिवम् ,सुन्दरम ...........
जिसने मुझे किया इस प्रेम मै पवित्र ......
प्रेम की परिभाषा में मेरा ,
तन तो राह साथ पर ,मन खोया हर बार !
थामना अब .......
क्यूंकि अब तो तन और मन की भाषा बदली सी है ,
इस जीवन को मान के नाटक ...
दिया है सोंप अब तुझे ,
चाहे कठपुतली बना नचा ले ,
या दे मुझे भी ,सबकी नज़रो मे सम्मान ...
ना दौलत का नशा ,ना है धन की है चाह मुझे
मिले जो तुझे से सच्चा प्यार ..
बस वही है मेरा अपना ........
बस वही है मेरा अपना ...............
आँखों के रस्ते से जो दिल में उतरे हो ,
(......कृति....अनु......)