Wednesday, February 4, 2009

दे अपना सच्चा साथ ........


मै जग में बहुत नाची ,
कभी क्रोध ने नचाया ,
तो कभी कामनायों ने अपना सर उठाया ,
कभी वसनायो ने आके मुझे हिलाया ,
तो कभी लालच ने ललचाया .........
क्या हू मै .......
हर पल ये ही सोचू ........
चली थी तन्हा ..खुद को पाने कि तमन्ना में ,
यहाँ मिले राहो में साथी अनेक .....
कुछ ने सिर्फ अपना कहा ,
कुछ ने माना मुझे सब कुछ अपना ,
पर ......दिल कि राहो पे जो मिला
वोह अपना सा था .....
मन खोला ,पर तन ना खोला अपना
फिर भी पढ़ी उसने ....मेरी मन कि भाषा ..
शालीनता और सज्जनता से दिया साथ मेरा ,
बना वोह केवट मेरा ,
देकर साथ अपना .....
दिल से दिल का मीत है वोह
एह! मेरे मन के साथी ....
यहाँ तू ही धूप और तू ही छाया.....
तुने ही इस दोस्ती को है किनारे लगाया .....
चाहे तो डुबो दे ,या ले चल पार इसे ..
आ सकता है कोई झोंका ......
हवा को किसने रोका है ?
तूफान के डर से .....
पत्ते टूटे जब शाक से ..ले जाये पवन उड़ाए,
जब मै टूटी तो फिर ,क्यों ना पवन आये !
चल चला चल ...बना के मुझे अपना साथी .........
दे अपना सच्चा साथ ........
नहीं पता ये कैसा एह्स्सास है......
चले मेरे साथ अब की टूटी तो बिखर जाउंगी ......
(......कृति.......अनु....

4 comments:

विवेक दुबे"निश्चल" said...

Bana he jo kebat tera, to par tujhe utarega. Aajaye kitne bhi tufan , na tutne dega, sada apne tan se lagaye rakhega, yah ahsas bow he jiska koi ahsas nahi hota, rakho bharosa bas deti chal santh saccha apne kebat ka . . .

Pintu said...
This comment has been removed by the author.
Pintu said...

oye kujh khilaya pilya karo es kudi nu marjani lakdi wargi huyi paii hagi
samjho es nu hukum rajai chalna nanak likheya naal fer jayada ki sochna

kalim said...

bahut khub likhti hai aap